जैन धर्म से संबंधित

जैन धर्म में ईश्वर की मान्यता नहीं है यानी इनके अनुसार ईश्वर नहीं है। वे आत्मा में विश्वास करते हैं।

सभी तीर्थंकर तथा उनके प्रतीक :
  • 1. ऋषभदेव  - वृषभ { ( प्रथम संस्थापक ) उल्लेख ऋग्वेद से प्राप्त होता है। }
  • 2. अजितनाथ - गज
  • 3. संभवनाथ - अश्व
  • 4. अभिनंदन नाथ - कपि
  • 5. सुमतिनाथ - क्रौंच
  • 6. पद्मप्रभु - पद्म
  • 7. सुपार्श्वनाथ - स्वास्तिक
  • 8. चंद्रप्रभु - चंद्र
  • 9. सुविधिनाथ - मकर
  • 10. शीतलनाथ - श्रीवत्स
  • 11. श्रेयांसनाथ - गैंडा
  • 12. वसुपूज्य - महिष
  • 13. विमलनाथ - वराह
  • 14. अनंतनाथ - श्येन
  • 15. धर्मनाथ - वजृ
  • 16. शांतिनाथ - मृग
  • 17. कुंथुनाथ - अज
  • 18. अरनाथ - मीन
  • 19. मल्लिनाथ - कलश
  • 20. मुनिसुव्रत - कूर्म
  • 21. नेमिनाथ - नीलोत्पल / नील कमल
  • 22. अरिष्टनेमि - शंख (उल्लेख ऋग्वेद से प्राप्त होता है।)
  • 23. पार्श्वनाथ - सर्पफण
  • 24. महावीर स्वामी - सिंह ( वास्तविक संस्थापक )
प्रथम तीर्थंकर - ऋषभदेव /आदिनाथ / केशरिया देव  :
  • जन्म : अयोध्या नगरी
  • पिता का नाम : नाभिराज (अन्तिम कुलकर राजा नाभिराज )
  • माता का नाम : मरुदेवी
  • पत्नी का नाम : नन्दा और सुनन्दा
  • पुत्र - भरत, महाबली
  • प्रतीक चिन्ह : वृषभ (बैल )
23 वें तीर्थंकर - पार्श्वनाथ  :
  • जन्म : काशी ( उत्तर प्रदेश )
  • निधन : 'सम्मेद पर्वत' पर ( वर्तमान झारखंड के गिरिडीह जिले में )
  • पिता का नाम : अश्वसेन ( अश्वसेन काशी के इक्ष्वाकु वंश के राजा थे।)
  • माता का नाम : वामादेवी 
  • इन्होंने स्त्रियों को भी जैन धर्म में प्रवेश करने की अनुमति प्रदान की।
  • जैन संघ में स्त्री संघ की अध्यक्षा पुष्पचूला नामक स्त्री थी।
  • प्रतीक चिन्ह : सर्प
  • पार्श्वनाथ द्वारा दिए गए 04 महाव्रत - सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह ( धन संचय का त्याग ) एवं अस्तेय (चोरी न करना) है।
  • पार्श्वनाथ के अनुयायियों को कहा जाता था - निर्ग्रन्थ
अंतिम (24वें ) तीर्थंकर - महावीर स्वामी :
  • वास्तविक संस्थापक - महावीर स्वामी  ( ये वर्ण के क्षत्रिय एवं कुल के ज्ञातृक थे। )
  • अन्य नाम - (05) वीर, अतिवीर, महावीर, सन्मति, वर्धमान
  • जन्म : 540 BC { कुण्डग्राम में,  वैशाली के निकट  ( बिहार प्रान्त ) }
  • निधन / निर्वाण : 468 BC में { ( कार्तिक कृष्णा अमावस  ( दीपावली ) के  दिन, बिहार राज्य के पावापुरी में72 वर्ष की आयु में ) }
  • कल्पसूत्र अनुसार : जन्म , निधन  - 599 BC to 527 BC
  • बचपन का नाम : वर्धमान 
  • पत्नी : यशोदा 
  • पुत्री : अनोज्जा प्रियदर्शनी
  • दामाद : जमालि
  • पिता : सिद्धार्थ ( वज्जि संघ के प्रमुख सरदार थे )
  • माता : त्रिशला ( लिच्छवि शासक चेटक की बहन थी )
  • बड़े भाई : नंदिवर्धन ( इनसे ही अनुमति लेकर महावीर स्वामी ने 30 वर्ष की उम्र में गृहत्याग किया )
  • बहन : सुदर्शना 
  • महावीर स्वामी प्रतीक चिन्ह : शेर 
ज्ञानप्राप्ति :
  • 12 वर्षों की तपस्या के बाद 
  • जृम्भिका गांव के पास 
  • ऋजुकूला नदी-तट पर 
  • साल वृक्ष ने नीचे 
  • वैशाख दशमी को ज्ञान प्राप्त किया - जिन , केवलिन , निर्ग्रन्थ कहलाए।
  • महावीर स्वामी कर्मवाद और पुनर्जन्म में विश्वास करते थे  { कर्मवाद मतलब आप जैसा कर्म ( काम ) करेंगे, वैसा ही फल मिलेगा }
उपदेश :
  • प्रथम उपदेश - शिष्य दामाद जमालि को अर्धमागधी भाषा में दिया था।
  • प्रथम उपदेश - राजगृही नगरी में विपुलाचल पर्वत ( बिहार ) पर लोगो को,प्राकृत भाषा में 
  • प्रचार-प्रसार का केंद्र वैशाली को बनाया।  
  • पार्श्वनाथ द्वारा दिए गए 04 महाव्रत  ( शिक्षा )में महावीर स्वामी ने पाचवां ब्रह्मचर्य जोङा 
  • महावीर स्वामी ने त्रिरत्न दिए – सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन, सम्यक आचरण।
  • जैन धर्म में कषाय के चार भेद माने गए - क्रोध, मान, माया तथा लोभ
महावीर स्वामी ने पावा में अपने 11 प्रमुख अनुयायियों के साथ एक संघ की स्थापना की ये 11 शिष्य गणधर कहे जाते थे। 
  • महावीर स्वामी की मृत्यु के समय में इस गणधर संघ के अध्यक्ष इंद्रभूति रहे। 
  • मृत्यु के बाद  रहे -सुधर्मन 
महावीर के प्रमुख शिष्यस्थूलभद्र,  भद्रबाहु :
  • चौथी शताब्दी ई०पू० में मगध ( उत्तर भारत )में 12 वर्षों तक भीषण अकाल पड़ जाता है जिससे महावीर के प्रमुख शिष्य भद्रबाहु अपने अनुयायियों को लेकर कर्नाटक ( दक्षिण भारत ) चले गए थे।
  • जब भद्रबाहु वापस मगध चले आये इन दोनों शिष्य में मतभेद हो गया तो एक संगीति बुलायी और उस संगीति में जैन सम्प्रदाय दो अलग-अलग सम्प्रदायों में बंट गया। 
    • स्थूलभद्र के समर्थक : श्वेताम्बर ( श्वेत वस्त्र धारण करने वाले )
    • भद्रबाहु के समर्थक : दिगम्बर ( नग्न रहने वाले ) 
जैन धर्म में 02 महत्वपूर्ण संगीतियां (अधिवेशन ) हुई थी :
  • प्रथम जैन संगीति 
    • आयोजन - 300 ई०पू० में पाटलिपुत्र में ( बिहार )
    • चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में 
    • यह स्थूलभद्र की अध्यक्षता में हुई थी। 
    • प्रथम जैन संगीति में जैन धर्म के प्रधान भाग 12 अंगों का संपादन हुआ।
    • इस सभा में जैन धर्म 'दिगंबर' एवं 'श्वेतांबर' दो भागों में बँट गया।
  • द्वितीय जैन संगीति 
    • आयोजन - 512 ई०पू० में वल्लभी (गुजरात) में 
    • यह महासभा देवऋद्धिश्रवण ( क्षमाश्रवण ) की अध्यक्षता में हुई।
आगम  :
  • जैन साहित्य को 'आगम' कहते हैं। इनमें 12 अंग, 12 उपांग, 10 प्रकीर्ण, 6 छेदसूत्र, 4 मूलसूत्र, 1 नन्दी सूत्र और 1 अनुयोगद्वार होते हैं।
  • इन आगम ग्रन्थों की रचना श्वेताम्बर सम्प्रदाय के आचार्यों द्वारा की गई थी। ( महावीर स्वामी की मृत्यु के बाद )
प्रमुख जैन धर्म ग्रंथ :
  • उवासगदसाओं - इसमें हूण शासक तोरमाण के विषय में जानकारी दी गई है।
  • भद्रबाहुचरित - इसमें चन्द्रगुप्त मौर्य के राज्यकाल की प्रमुख घटनाओं का विवरण है।
  • आचारांगसूत्र - इसमें जैन भिक्षुओं के आचार-नियम और विधि-निषेधों का उल्लेख है।
  • न्यायधम्मकहासुत्त - इसमें महावीर की शिक्षाओं का उल्लेख है।
  • भगवती सूत्र - इस जैन ग्रन्थ में महावीर के जीवन परिचय का विवरण है।
  • कल्पसूत्र - इसमें सभी जैन तीर्थंकरों ( 24 ) की जीवनियों का संकलन है,  { लिखा गया  - भद्रबाहु द्वारा संस्कृत में }
अन्य परीक्षापयोगी तथ्य :
    1. थेरापंथी, तेरापंथी, बिसपंथी ये सभी जैन धर्म के उपसम्प्रदाय हैं।
    2. जैन दर्शन ज्ञान का स्रोत किसे मानता है? - प्रत्यक्ष, अनुमान, शब्द
    3. कालांतर में जैन धर्म ने अपना प्रभाव स्थापित किया - पश्चिमी भारत
    4. जैन धर्म में किस सिद्धांत पर सबसे अधिक बल दिया गया है? - अहिंसा पर
    5. सत्य बोलने में कौन सा राजा लोकव्यवहार में प्रसिद्ध हुआ है? - राजा हरिश्चन्द्र
    6. जैन धर्म के सप्तभंगी ज्ञान के अन्य नाम क्या है?  - अनेकांतवाद और स्यादवाद
      • अनेकान्तवाद - प्रत्येक वस्तु में अनेक गुण हैं।
      • स्यायवाद - अनेक गुणे को ही केवलिन जान सकता है।

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