वर्धन वंश
गुप्त वंश के पतन के बाद जिन नये राजवंशों का उद्भव हुआ, उनमें मैत्रक, मौखरि, पुष्यभूति, परवर्ती गुप्त और गौड़ प्रमुख हैं। इन राजवंशों में पुष्यभूति वंश के शासकों ने सबसे विशाल साम्राज्य स्थापित किया।
प्रमुख शासक :
- पुष्यभूति ( संस्थापक )
- प्रभाकरवर्द्धन ( इस वंश की स्वतंत्रता का जन्मदाता था )
- राज्यवर्द्धन
- हर्षवर्द्धन
प्रभाकरवर्द्धन :
- उपाधियाँ - परमभट्टारक, महाराजाधिराज
- पत्नी - यशोमती ( पति की मृत्यु पर ये सती हो गयी )
- पुत्री का नाम - राज्यश्री ( इसका का विवाह कन्नौज के मौखरि राजा ग्रहवर्मा के साथ हुआ । )
- पुत्र - (02) राज्यवर्द्धन, हर्षवर्द्धन
- राजधानी - थानेश्वर ( हरियाणा प्रांत के कुरुक्षेत्र जिले में )
- पुष्यभूति वंश का प्रथम प्रभावशाली शासक था,
- भगवान शिव और सूर्य के उपासक थे।
- देवगुप्त ने ग्रहवर्मा की हत्या कर दी और राज्यश्री को बंदी बनाकर कारागार में डाल दिया
- राज्यवर्द्धन ने देवगुप्त को मार डाला, परंतु देवगुप्त के मित्र शशांक ने धोखा देकर राज्यवर्द्धन की हत्या कर दी।
- पुष्यभूति वंश - हरियाणा के शासक
- ग्रहवर्मा - कन्नौज (UP) का शासक
- देवगुप्त - मालवा का शासक
- शशांक - गौड़ / बंगाल का शासक
हर्षवर्द्धन / शिलादित्य :
- जन्म - 590 ई.
- गद्दी पर बैठा - 606 ई. में 16 वर्ष की अवस्था में
- उपाधि - परमभट्टारक नरेश
- पुत्र - वाग्यवर्धन , कल्याण वर्धन
- प्रारंभ में - कुलदेवता शिव भक्त था। चीनी यात्री ह्वेनसाँग से मिलने के बाद बौद्ध बन गया।
- नालंदा महाविहार - महायान बौद्ध धर्म की शिक्षा का प्रधान केंद्र था।
- इसको भारत का अंतिम हिन्दू सम्राट् कहा गया है।
- इसको साहित्य का सम्राट भी कहा गया है।
- इनके शशांक को पराजित करके कन्नौज को राजधानी बनाया। शशांक शैव धर्म का अनुयायी था। इसने बोधिवृक्ष ( बोधगया ) को कटवा दिया ।
- हर्ष ने कश्मीर के शासक से बुद्ध के दंत अवशेष बलपूर्वक प्राप्त किए ।
- हर्ष और पुलकेशिन-II के बीच नर्मदा नदी के तट पर 618ई. में युद्ध हुआ, जिसमें हर्ष की पराजय हुई।
- हर्ष 641 ई. में अपने दूत चीन भेजे तथा 643 ई. एवं 645 ई. में दो चीनी दूत उसके दरबार में आए।
दरबारी :
- कवि बाणभट्ट - हर्षचरित एवं कादम्बरी की रचना की। बाणभट्ट के गुरु - भर्चु
- दिवाकर मित्र ( बौद्ध भिक्षु ) - इनकी मदद से ही हर्ष ने अपनी बहन राज्यश्री को खोजा था।
- मातंग दिवाकर - मयूर शतक पुस्तक लिखी
- पुस्तक लिखी : सि-यू-की
- { 630 AD to 645 AD भारत में रहा } ह्वेनसाँग को यात्रियों में राजकुमार, नीति का पंडित एवं वर्तमान शाक्यमुनि, त्सांग कहा जाता है। वह नालंदा विश्वविद्यालय में 18 महिने तक पढ़ने एवं बौद्ध ग्रंथ संग्रह करने के उद्देश्य से भारत आया था।
कार्य :
- हर्ष ने रचना की - प्रियदर्शिका, रत्नावली तथा नागानन्द संस्कृत नाटक ग्रंथों की { इनको लिखने का श्रेय कवि धावक को दिया जाता है। }
- प्रयाग में प्रति पाँचवें वर्ष एक समारोह आयोजित किया जाता था जिसे महामोक्षपरिषद कहा जाता था। ह्वेनसाँग स्वयं 6ठे समारोह में सम्मिलित हुआ ।
- कुम्भ मेलों को शुरू करवाए।
प्रशासन :
हर्ष की मंत्रीपरिषद ( हर्षचरित के अनुसार )
- भण्डि - प्रधान सचिव
- सिंहनाद - प्रधान सेनापति
- कुन्तल - अश्व सेना का प्रधान / सेनापति
- स्कन्दगुप्त - गज सेना का प्रमुख
इनके समय में किसे क्या कहा जाता था :
- हर्ष के अधीनस्थ शासक - महाराज अथवा महासामन्त
- मंत्रीपरिषद के मंत्री - सचिव या आमात्य
- प्रांत - भूक्ति, प्रत्येक भूक्ति का शासक राजस्थानीय, उपरिक अथवा राष्ट्रीय कहलाता था ।
- जिले - विषय, जिसका प्रधान विषयपति होता था ।
- आधुनिक तहसील - पाठक
- पुलिस कर्मियों को - चाट, भाट
- पुलिस अधिकारी को - दण्डपाशिक
- हर्ष के समय में मथुरा सूती वस्त्रों के निर्माण के लिए लोकप्रिय रहा।
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