01. संगम युग (100AD - 300 AD) चोल, चेर तथा पाण्ड्य
02. दक्षिण भारत के राज्य ( 500 AD - 1200 AD )चोल ,पल्लव , राष्ट्रकूट , चालुक्य का विवरण प्राप्त होता है।
संगम युग
(100AD - 300 AD)
संगम संस्कृत भाषा का शब्द है। अर्थ - परिषद् / गोष्ठी / सभा > जिनमें तमिल कवि एवं विद्वान एकत्र होते थे । पाण्ड्य राजाओं के संरक्षण में कुल तीन संगम आयोजित किए गए।
- तमिल देवता - मुरुगन / सुब्रह्मण्य ( जिनका प्रतीक - मुर्गा , अस्त्र - बर्छा )
तीन संगम :
- स्थान - इनके अध्यक्ष
- मदुरा - अगस्त्य / अगात्तियार
- कपाटपुरम / अलैवाई - तोल्काप्पियर
- मदुरा - नक्कीरर
इन सभा में संकलित तमिल साहित्य को ही संगम साहित्य की संज्ञा प्रदान की गयी जिनमें तमिल प्रदेश के तीन राज्यों चोल, चेर तथा पाण्ड्य का विवरण प्राप्त होता है।
- चोल ( उत्तर-पूर्व में ) ( संगम राज्यों में सर्वाधिक शक्तिशाली चोलों का राज्य था। )
- चेर (दक्षिण- पश्चिम में )
- पाण्ड्य राज्य (दक्षिण-पूर्व में )
चोल साम्राज्य :
चोल वंश का इतिहास तीसरी शताब्दी में देखने को मिलता है बाद में पांड्यो की शक्ति के कारन इनका पतन हो गया था और 9 वी शताब्दी में इनका फिर से उदय हुआ था।
- प्रतीक चिन्ह - बाघ
- राजधानी - मनतूर, उरैयूर और तंजावुर
- यह पेन्नार तथा दक्षिणी वेल्लारू नदियों के बीच स्थित था।
- चोल वंश के बारे में प्रथम जानकारी पाणिनि की रचना अष्टाध्यायी से मिलती है।
प्रमुख राजा :
- करिकाल
- एलारा
करिकाल :
- चोल साम्राज्य का सबसे प्रतापी राजा करिकाल था।
- ब्राह्मण मतानुयायी था और इसने ब्राह्मण धर्म को राजकीय संरक्षण प्रदान किया।
- पुहार पत्तन का निर्माण इसी के समय हुआ।
- इसने कावेरी नदी के मुहाने पर बाँध बनवाया तथा सिंचाई करने के लिए नहरों का निर्माण करवाया।
- पेरूनानुन्नुपादे में करिकाल को संगीत के सप्तस्वरों का विशेषज्ञ बताया गया है।
एलारा :
- श्रीलंका को जीता और उस पर 50 वर्षों तक शासन किया।
चेर साम्राज्य :
- प्रतीक चिन्ह - धनुष
- राजधानी - वंजि अथवा करूर
- चेर का अर्थ - पर्वतीय देश
- आधुनिक केरल प्रान्त में स्थित था।
- संगम काल के वंशों में सबसे प्राचीन चेर था
प्रमुख राजा :
- उदियंजीरल (लगभग 130 ई.),
- नेदुंजीरल आदन (155 ई.)
- सेनगुट्टुवन
- आदिगेमान
सेनगुट्टुवन (180 ई.) :
- उपाधि - अधिराज
- चेर कवियों ने शेनगुट्टवन जिसे "लाल चेर" के नाम से भी जाना जाता है, उसे सबसे महान चेर राजा बताया है।
- कणगी पूजा ( पत्नी पूजा ) की शुरूआत लाल चेर ने की ।
आदिगेमान :
- यह चेर वंश का प्रसिद्ध राजा था।
- इसने दणिक्ष भारत में गन्ने की खेती की शुरूआत की थी ।
पाण्ड्य साम्राज्य :
- प्रतीक चिन्ह - मछली
- राजधानी - मदुरा ( मदुरई )
- पाण्ड्य वंश मातृसत्तात्मक था।
- शक्तिया क्षीण हो गई - 5वी शताब्दी के बाद
- इस वंश का प्रसिद्ध शासक नोडियोन था इसी ने समुद्र पूजा की शुरुआत की थी
- पाण्ड्य राजाओं ने ही तीनों संगमों का आयोजन किया था
- यह राज्य मोतियों के लिए काफी प्रसिद्ध था
- पाण्ड्य वंश की प्रथम जानकारी मेगास्थनीज की पुस्तक "इण्डिका" से मिलती है
- यह कावेरी के दक्षिण में स्थित था।
- पाण्ड्य राजाओं में नेडुजेलियन ( लगभग 210 ई. ) सबसे शक्तिशाली था।
पाण्ड्य राज्य में कोर्कई, शालियूर एवं चेर राज्य में बन्दर प्रमुख बन्दरगाह था। कोर्कई मोती खोजने का प्रमुख पत्तन था ।
संगम काल के प्रमुख साहित्य
संगम साहित्य के काव्य को दो श्रेणियों में बाँटा गया है :
- अकम { अकम काव्यों का मूल विषय प्रेम प्रसंग है }
- पुरम { पुरम काव्यों का विषय युद्ध है }
प्रमुख संगम साहित्य :
शिल्पादिकारम् ( पायलों का गीत )
- लेखक - इलंगो आदिगल { चेरा राजवंश के सेनगुट्टुवन का छोटा भाई था। }
- यह बौद्ध रुझान वाला 'तमिल साहित्य' के प्रथम महाकाव्य के रूप में जाना जाता है।
- इसमें 30 सर्ग हैं जिन्हें तीन खण्डों में लिपिबद्ध किया गया है।
- इसमें कावेरीपट्टन के कोवलन, उसकी पत्नी कण्णगि एवं नर्तकी माधवी की प्रेम कहानी है ।
मणिमेकले :
- लेखक - सीतलैसत्तनार { मदुरा के बौद्ध धर्मावलंबी व्यापारी था। }
- इसमें 30 सर्गों के अतिरिक्त एक प्रस्तावना भी है।
- इसमें जैन प्रभाव है।
- इसमें राजकुमार उदयकुमारन् एवं मणिमेकलै (कोवलन एवं नर्तकी माधवी की पुत्री ) की प्रेम कहानी है। नीलकंठ शास्त्री के अनुसार यह बौद्ध लेखक दिङनाथ (5वीं शती) की कृति 'न्याय प्रवेश' पर आधारित है ।
जीवकचिन्तामणि :
- लेखक - जैन भिक्षु तिरुत्तक्क देवर
- यह संगमकाल के बहुत बाद की रचना है।
- कहा जाता है कि तिरुत्तक्क देवर पहले चोल राजकुमार था जो बाद में जैन भिक्षु बन गया।
तोल्काप्पियम :
- लेखक - तोलकाप्पियर
- यह तमिल व्याकरण है।
संगम युग में किसे क्या कहा जाता था :
- मंत्रियों को - अमाइच्चान या अमाइच्चार
- राजधानी में राजसभा को - नालवै ( यह न्याय का कार्य करता था। )
- राजा के न्यायालय को - मन्रम
- एनियर : शिकारियों की एक जाति को वेनिगर कहा गया है।
- मलवर : लूट-पाट करने वाली जाति
- नर्तक, नर्तकियों व गायकों - पाणर व विडैलियर
- समाज के निम्न वर्ग की महिलाएँ ही मुख्यतः खेती का कार्य किया करती थी । इने कडैसिवर कहा गया है।
- चोरी तथा व्यभिचार के अपराध के लिए मृत्युदण्ड दिया जाता था। झूठी गवाही देने पर जीभ काट ली जाती थी ।
- भूमिकर उपज का छठा भाग होता था।
- सेना चतुरंगिणी होती थी जिसमें अश्व, गज, रथ तथा पैदल सिपाही सम्मिलित थे ।
- युद्ध भूमि में वीरगति पाने वाले सैनिकों के सम्मान में पत्थर की मूर्ति बनवाए जाने की प्रथा थी ।
- राजा अपने आवास की रक्षा के लिए सशस्त्र महिलाओं को तैनात करता था।
- संगम काल में समय जानने के लिए जल घड़ी का प्रयोग किया जाता था ।
- संगम काल में चावल मुख्य खाद्यान्न था।
- पाँचवीं सदी के बाद बहुत सी प्रसिद्ध तमिल रचनाएँ नैतिक एवं दार्शनिक उद्देश्यों से लिखीं गयीं, इनमें तिरुवल्लुवार की तिरुकुरल सबसे प्रसिद्ध है।
- रामकथा के अनेक तमिल संस्करण हैं, जिनमें सबसे प्रसिद्ध कंबन की इरामावतारम है।
- संगम काल के लोग कौवे को शुभ पक्षी मानते थे।
- संगम काल में ही मिस्र के एक नाविक हिप्पोलस ने मानसूनी हवाओं के सहारे बड़े जहाजों से सीधे समुद्र पार कर सकने की विधि खोजी
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