रस – परिभाषा ,भेद , उदाहरण

रस

साहित्य दर्पण के रचयिता ने कहा है- ''रसात्मकं वाक्यं काव्यम्'' अर्थात रस ही काव्य की आत्मा है।
रस का शाब्दिक अर्थ है 'आनंद'।

परिभाषा : काव्य को पढ़ने, सुनने या नाटकादि को देखने से जिस आनंद की अनुभूति होती है, उसे 'रस' कहा जाता है।
  • रस सिद्धांत के मूल प्रवर्तक आचार्य भरतमुनि है।
रस के प्रकार :
  1. श्रृंगार
  2. हास्य
  3. करुण
  4. रौद्र
  5. वीर
  6. भयानक
  7. वीभत्स
  8. अद्भुत
  9. शांत रस { बाद में एक और जोड़ा गया }
  10. भक्ति रस
  11. वत्सल रस
  • 10 , 11 इन दोनों को सबसे बाद में जोड़ा गया। 
  • 'नाट्यशास्त्र' में भरतमुनि ने रस के 08 प्रकार बताएं हैं। 1 to 08  
  • प्राचीन काव्य-शास्त्रियों के अनुसार रसों की संख्या 09 है। 1 to 09
  • आधुनिक काव्य-शास्त्रियों के अनुसार रसों की संख्या ग्यारह है। 01 to 11
रस के अंग : 04

  1. स्थायी भाव
  2. विभाव : इसके उपभेद - (क) आलंबन विभाव (ख) उद्दीपन विभाव।
  3. अनुभाव
  4. व्यभिचारी भाव

01. स्थायी भाव : यह हृदय में मूल रूप से विद्यमान रहने वाले भाव है।

रस एवं उनके स्थायी भाव :
  • (1) शृंगार - रति
  • (2) करुण - शोक
  • (3) हास्य - हास
  • (4) वीर रस - उत्साह
  • (5) भयानव - भय
  • (6) रौद्र रस - क्रोध
  • (7) अद्भुत - आश्चर्य , विस्मय
  • (8) शांत रस - निर्वेद या निर्वृती
  • (9) वीभत्स - जुगुप्सा
  • (10) वात्सल्य - रति
  • (11) भक्ति रस - अनुराग
02. विभाव - जो व्यक्ति, वस्तु या परिस्थितियाँ स्थायी भावों को उद्दीपन या जागृत करती हैं, उन्हें विभाव कहते हैं।
e.g. : नायक-नायिका

विभाव के दो भेद हैं :

(क) आलंबन विभाव - जिसका सहारा पाकर स्थायी भाव जगते है।

आलंबन विभाव के दो पक्ष होते है : 
  • आश्रयालंबन : जिसके मन में रति उत्पन्न हो। नायक 
  • विषयालंबन : जिसके लिए मन में रति उत्पन्न हो - नायिका

(ख) उद्दीपन विभाव - स्थायी भाव उद्यीप्त या तीव्र करने वाले कारण
e.g. नायक नायिका का सौन्दर्य रूप

03. अनुभाव : आलम्बन और उद्यीपन विभावों के कारण मनोगत भाव को व्यक्त करने वाले शरीर-विकार अनुभाव कहलाते है।

अनुभाव के चार भेद है :

  • (क) कायिक - कटाक्ष, हस्तसंचालन, सिटी मारना, बालों में हाथ फेरना आदि आंगिक चेष्टाएँ कायिक अनुभाव कही जाती है। आंख मारना
  • (ख) वाचिक- भाव-दशा के कारण वचन में आये परिवर्तन को वाचिक अनुभाव कहते हैं। परपोज करना
  • (ग) आहार्य- बनावटी वेश रचना को आहार्य अनुभाव कहते हैं। नए कपडे, बालों का इस्टाईल करना
  • (च) सात्विक- शरीर के स्वाभाविक अंग-विकार को सात्विक अनुभाव कहते हैं।
(च) सात्विक के भेद : 08
  1. स्तंभ - एक जगह खम्बे की तरह जम गया
  2. स्वेद - पसीना पसीना हो जाना
  3. रोमांच - निगाहें मिलने पर दिल की धडकने तेज हो, चैटिंग, नायक-नायकिा स्नेह प्रकट करे
  4. स्वर-भंग - कुछ बोला नहीं जा रहा
  5. कम्प - कापंने लग गया
  6. विवर्णता ( रंगहीनता) - चहरा पीला पड़ गया
  7. अश्रु - आंशु निकलनें लगे
  8. प्रलय (संज्ञाहीनता/निश्चेष्टता) : दिमाग काम नही कर रहा , क्या करू क्या ना करू
04. व्यभिचारी भाव - मन में संचरण करने वाले (आने-जाने वाले) भावों को 'संचारी' या 'व्यभिचारी' भाव कहते है।
  • इनकी संख्या 33 है।
  1. हर्ष
  2. उत्सुकता
  3. त्रास (भय/व्यग्रता)
  4. लज्जा (ब्रीड़ा)
  5. ग्लानि 
  6. चिंता
  7. शंका 
  8. असूया (दूसरे के उत्कर्ष के प्रति असहिष्णुता)
  9. अमर्ष ( विरोधी का अपकार करने की अक्षमता से उत्पत्र दुःख)
  10. मोह
  11. गर्व 
  12. विषाद 
  13. उग्रता 
  14. चपलता 
  15. दीनता
  16. जड़ता
  17. आवेग
  18. निर्वेद (अपने को कोसना या धिक्कारना)
  19. घृति (इच्छाओं की पूर्ति, चित्त की चंचलता का अभाव)
  20. मति
  21. बिबोध (चैतन्य लाभ)
  22. वितर्क 
  23. श्रम
  24. आलस्य
  25. निद्रा
  26. स्वप्न 
  27. स्मृति
  28. मद
  29. उन्माद
  30. अवहित्था (हर्ष आदि भावों को छिपाना)
  31. अपस्मार (मूर्च्छा)
  32. व्याधि (रोग)
  33. मरण

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